भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिन्दगी की राह में / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिन्दगी की राह में प्रिय,
फूल भी हैं, शूल भी हैं॥

हर कदम अपना यहाँ तुम
यह समझ आगे बढ़ाओ;
शूल ओ चुभ जायँ, उनको
बीन पलकों से उठाओ।

बाढ़ बन जाये भले हर बूँद
फिर भी नाव ले कर
तुम चलो, जीवन-सरित में
बाढ़ भी हैं, कूल भी हैं॥1॥

जन्म जिस भू पर लिया
वह ही स्वयं समतल नहीं है;
है नदी, नाले कहीं, तो
घाटियाँ, पर्वत कहीं हैं।

हर समय कब एक सी
चलती हमेशा ही हवाहै?
रुख बदलता है, कभी
अनुकल भी, प्रतिकूल भी है॥2॥

जनवरी, 1960