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जिन्दगी के सफर में मिलल साथ जब / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

जिन्दगी के सफर में मिलल साथ जब
खेलते-कूदते कट रहल जिन्दगी
राह में काँट कतनो गड़ल पाँव में
आज ले पीर हँसते सहल जिन्दगी

डाल के जाल में आज ले बा फँसल
रोज फन्दा गला के बहुत बा कसल
कामना कम कबो ना भइल आज ले
ई कहल ना सुने बेकहल जिन्दगी

पाँव जम ना सकल बा जमीं पर भले
चान पर सैर के ख्वाब लागल पले
ना मिलल आसमाँ, ना भइल ई जमीं
हो चलल बन हवा के महल जिन्दगी

जीत में हार में, फूल में खार में
चल किनारे लगल भा रहल धार में
मोर बन के कबो नाचते रह गइल
दर्द में लोर बनके बहल जिन्दगी