भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिन्दगी मा च सिरफ अब त्यारू हि सारू / शिवदयाल 'शैलज'
Kavita Kosh से
जिन्दगी मा च सिरफ अब त्यारू हि सारू
छीटि-छाटिकी बकै, खारू हि खारू
सौंगी छै कटण त्वै दगड़ी या जिन्दगी
गैरों दगड़ी बाटु हिटि, फारू हि फारू
छाति ठोकणु छौं, आड़ दीण कु जो डांग
जिकुड़ि मा बिनांद वो, बणि गारू हि गारू
बसगल्या गाड अयीं, मारि द्या फाळ
छट छुटि छाल हत, गदिनु तारू नि तारू
ह्यूंचळि कांठि पौंछु , मान सरोवर ताल
त्वै बिना सूनो सफर! कारू नि कारू
काटि ले रात अन्धेरी! राखि हौसला!
होलू उन्दकार कभी! प्यारू हि प्यारू।