जिन्हें नज़ाकत से जिया है मैंने / रवि कुमार
मैंने जिद्दोजिहद की हर पल से
और हार जाने से पहले
खू़ने-ज़िगर में डूबी उंगलियों से
फ़िज़ां में उकेरे कुछ ज़ज़्बात
वे हर दिल में गहरे पैठ गए
और कविता में मुन्तकिल हो गए
मैंने चाँद देखा
फिर महबूबा की आँखों की गहराई
मेरे दिल में हर शै के लिए
बेपनाह मुहब्बत पैदा हो गई
मैंने कैक्टस से चुने कुछ कांटे
और उन्हें चूम लिया
वे खिल कर गुलाब हो गए
और कविता में मुन्तकिल हो गए
मैंने आफ़तज़दा कारवां को
पानी पिलाया और राह दिखाई
इसी सबब मुझे जंजीरों से सजाया गया
और एक गोरकन को नशे में डुबोकर
जबरदस्ती तैयार किया गया
जब तक कब्र खुदती
मैंने बेतकल्लुफ़ी से हँसी लुटाई
और कु़र्बानगाह में फुसफुसाकर
अपने आप से की बेबाक गुफ़्तगूं
वह हर ख़ित्ते में गूंज गई
और कविता में मुन्तकिल हो गई
मैं ज़मीं के इस सिरे से दूसरे सिरे तक
बोने में जुटा हूँ तमाम कविताएं
जिन्हें नज़ाकत से जिया है मैंने
जैसे ही वे अंकुराएंगी
एक लाल नदी
सैलाब आते दरिया में तब्दील हो जाएगी