जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में / इक़बाल
जिन्हें मैं ढूँढता था आस्मानों में ज़मीनों में
वो निकले मेरे ज़ुल्मतख़ाना-ए-दिल<ref>दिल के अँधेरे घर </ref> के मकीनों<ref>मकान में रहने वाले</ref>में
अगर कुछ आशना<ref>परिचित </ref> होता मज़ाक़े- जिबहसाई <ref>माथा टेकने का आनन्द</ref> से
तो संगे-आस्ताने-काबा<ref>काबा की दहलीज़ का पत्थर जिसपर हर यात्री माथा टेकता है</ref> जा मिलता जबीनों<ref> माथों </ref> से
कभी अपना भी नज़्ज़ारा किया है<ref>कभी ख़ुद को भी देखा है </ref> तूने ऐ मजनूँ !
कि लैला की तरह तू भी तो है महमिलनशीनों<ref>ऊँट की पीठ पर पर्देदार हौदे में बैठने वाली </ref> में
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती है महीनों में
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा<ref>मल्लाह,नाविक</ref>क्या ग़र्क़<ref>डूबने </ref> होने से
कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों<ref>जहाज़ों </ref> में
जला सकती है शम्म -ए-कुश्ता<ref>बुझी हुई शम्मा को</ref> को मौज-ए-नफ़स <ref>उच्छ्वास </ref> उन की
इलाही क्या छुपा होता है अहल-ए-दिल<ref>दिल वालों</ref> के सीनों में
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत<ref>सेवा</ref> फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर<ref>मोती</ref> बादशाहों के ख़ज़ीनों<ref>कोशों </ref> में
न पूछ इन ख़िर्क़ापोशों<ref>चीथड़े पहने हुए लोगों </ref> की इरादत<ref>विश्वास</ref> हो तो देख उनको
यदे-बैज़ा<ref>चमत्कारी हाथ </ref> लिए बैठे हैं ज़ालिम आस्तीनों में
नुमायाँ<ref>प्रकट</ref> हो के दिखला दे कभी इनको जमाल<ref>शान </ref> अपना
बहुत मुद्दत से चर्चे हैं तेरे बारीक बीनों<ref>बुद्धिमानों </ref> के
महब्बत के लिये दिल ढूँढ कोई टूटने वाला
ये वो मै है जिसे रखते हैं नाज़ुक आबगीनों<ref>पानी के बुलबुलों</ref> में
ख़मोश ऐ दिल भरी महफिल में चिल्लाना नहीं अच्छा
अदब पहला क़रीना है महब्बत के क़रीनों में
किसी ऐसे शरर<ref>चिंगारी </ref> से फूँक अपने ख़िरमने-दिल<ref>दिल की कुटिया </ref> को
कि ख़ुर्शीदे-क़यामत<ref>क़यामत का सूर्य</ref> भी हो तेरे ख़ोश्हचीनों<ref>प्रशंसकों </ref> में
बुरा समझूँ उन्हें मुझ से तो ऐसा हो नहीं सकता
कि मैं ख़ुद भी तो हूँ "इक़बाल" अपने नुक्ताचीनों<ref>आलोचकों </ref> में