जिन पर मेघ के नयन गिरे
वे सब के सब हो गए हरे
पतझड़ का सुनकर करूँ रुदन
जिसने उतार दे दिए वसन
उस पर निकले किशोर किसलय
कलियाँ निकलीं, निकला यौवन
सब के सुख से जो कली हँसी
उसकी साँसों में सुरभि बसी
सह स्वयं ज्येष्ठ की तीव्र तपन
जिसने अपने छायाश्रित जन
के लिए बनाई सुखद मही;
लख में भरे नभ के लोचन
वे सब के सब हो गए हरे !