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जिन लालन चाह करी इतनी / ठाकुर
Kavita Kosh से
जिन लालन चाह करी इतनी, तिन्हैं देखिबे के अब लाले परे॥
अब का समुझावती को समुझै, बदनामी के बीजन ब्वै चुकी री।
इतनों बिचार करो तो सखी, यह लाज की साज तो ध्वै चुकी री॥
कवि 'ठाकुर काम न या सबको, करि प्रीत पतीब्रत ख्वै चुकी री।
नेकी बदी जो लिखी हुती भाल में, होनी हुती सु तो ह्वै चुकी री॥