जिसका जन्म हुआ है वह अवश्य मरेगा / संजय तिवारी
संकृति के पुत्र सांकृत्य गोत्रीय,
गुरु और रंतिदेव
त्याग का ही लक्ष्य एकमेव
भरत वंशीय सम्राट्
राजा रंतिदेव की करुणा और दानशीलता
थी अद्भुत और विराट
जीवन को निकट से जाना
प्रजा की सेवा को सर्वोपरि माना
कर के प्रजा हित का भान
सर्वस्व कर दिया दान
राजा होकर भी खुद प्रजा की तरह जीने लगे
जीवन का हर दुःख सपरिवार पीने लगे
जो कमाया उसे तत्काल बाँट दिया
राजा और प्रजा की दूरी को पाट दिया
वह भी दिन आया
अड़तालीस दिनों तक कुछ भी न पाया
नहीं कुछ खाया
जर्जर हो गयी काया
अगले दिन जब कही से
कुछ अन्न और जल पाया
ग्रहण कर जीवन बचाने का समय था आया
तभी एक ब्राह्मण अतिथि आ गए
सामने की थाल अतिथि ही खा गए
बचा जूठन पाने को थे तैयार
तभी एक शूद्र अतिथि आये द्वार
भूखे राजा ने उसे भी जिमाया
फिर अतिथि से बचा जूठन खाने वाले थे
तभी एक और मनुष्य आया
जिसने कई कुत्ते भी पाले थे
राजा ने उसके पूरे कुनबे को भी जिमाया
पानी की तरफ हाथ बढ़ाया
कुछ घूँट लेने ही चले थे
तब तक कणो में पड़े थे
चांडाल के बोल
राजन आँखे खोल
बहुत प्यासा हूँ? पानी पिला दो
किसी तरह मुझे जिला दो
जो खुद भूख और प्यास से व्याकुल थे
प्राण निकलने को व्याकुल थे
रंतिदेव ने बचा हुआ पानी भी
चांडाल को ही पिला दिया
उसे जिला दिया
खुद को और अपने कुल को
रख कर फिर भूखा और प्यासा
दान और भक्ति का किया सम्मान
ऐसा था एक प्रजापालक का स्वाभिमान
यह रंतिदेव की ब्रह्म परीक्षा थी
ब्रह्मा? विष्णु? महेश की इच्छा थी
मांगने जब कहा तो राजा निहाल हो गए
उनके शब्दों से तीनो लोक बेहाल हो गए
समाने खड़े त्रिदेव
और कहते जा रहे रंतिदेव -
राज्यं न प्रार्थये,
स्वर्गं न प्रार्थये ।
मोक्षमपि न प्रार्थये ।
किन्तु दुःखतप्तानां जीविनां
दुःखनाशमात्रम् इच्छामि ।
न त्वहं कामये राज्यं
न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।
कामये दुःखतप्तानां
प्राणिनाम् आर्तिनाशनम्।
न तो राज्य की कामना
न स्वर्ग की
और न ही मोक्ष की,
बस यही कामना
प्राणियों के कष्ट कर सकू दूर
न मनुष्य हो मजबूर
यहथी रंतिदेव की भक्ति
नष्ट हो गयी
त्रिगुणमयी माया की भी शक्ति
यह है भक्ति? यही है ज्ञान
गौतम इसमें कही नहीं है अभिमान
सनातम में यह रंतिदेव की परंपरा है
देखो? यहाँ कितनी त्वरा है
तुम्हारा ज्ञान यहाँ पानी ही भरेगा
जिसका जन्म हुआ है
वह अवश्य मरेगा।