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जिसकी आँखों में कोई ख़्वाब नहीं / श्याम कश्यप बेचैन

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जिसकी आँखों में कोई ख़्वाब नहीं
ज़िंदगी उनकी कामयाब नहीं

लोग ख़ुशबू से जान लेते हैं
मैं खिला हूँ कहे गुलाब नहीं

देनी पड़ती है सर की कुरबानी
सिर्फ नारों से इंक़लाब नहीं

उसका घर, घर नहीं तबेला है
जिसके घर में कोई क़िताब नहीं

जितना समझा है आपने मुझको
उतना मैं आदमी ख़राब नहीं

जब जवाँ थे तो कम तजुर्बे थे
अब तजुर्बा है तो शबाब नहीं