भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिसके पास सिर्फ़ अपनी जान है / हेमन्त कुकरेती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो झाड़ियों में छिपा था
वह भालू ही रहा होगा
इसलिए कि जो आलू खाते थे उसके किस्से से ही डर गये
जो आलू उगाते थे उन्होंने ही भालू को हड़काया

गर्म होने के लिए वे दूध पीने चले गये
जो मवेशी चराकर लौटे उनका तो पसीना ही
इतना तेजाब है कि बंजर जला दे

बसाने के नाम पर जो बस्तियाँ जलाते हैं
वे हिमालय को गलाकर
उसका पानी सात समन्दर पार भेजते हैं
और गंगा के किनारे शराब की बोतलों में बेचते हैं

बचाने के लिए जिनके पास सिर्फ़ अपनी जान है
वह क्यों इन्हें चुनता है
और अपने उगाये आलू की क़ीमत से डरकर
झाड़ियों में शरण लेता है

वह किस्सों से बाहर आकर उन्हें अन्दर क्यों नहीं करता
जो इनके घरों पर कब्ज़ा करने के बाद
खेतों में अन्तरिक्ष नरक बनाना चाहते हैं