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जिसके पास सिर्फ़ अपनी जान है / हेमन्त कुकरेती
Kavita Kosh से
जो झाड़ियों में छिपा था
वह भालू ही रहा होगा
इसलिए कि जो आलू खाते थे उसके किस्से से ही डर गये
जो आलू उगाते थे उन्होंने ही भालू को हड़काया
गर्म होने के लिए वे दूध पीने चले गये
जो मवेशी चराकर लौटे उनका तो पसीना ही
इतना तेजाब है कि बंजर जला दे
बसाने के नाम पर जो बस्तियाँ जलाते हैं
वे हिमालय को गलाकर
उसका पानी सात समन्दर पार भेजते हैं
और गंगा के किनारे शराब की बोतलों में बेचते हैं
बचाने के लिए जिनके पास सिर्फ़ अपनी जान है
वह क्यों इन्हें चुनता है
और अपने उगाये आलू की क़ीमत से डरकर
झाड़ियों में शरण लेता है
वह किस्सों से बाहर आकर उन्हें अन्दर क्यों नहीं करता
जो इनके घरों पर कब्ज़ा करने के बाद
खेतों में अन्तरिक्ष नरक बनाना चाहते हैं