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जिसको सब कहते हैं समंदर है / मरदान अली ख़ान 'राना'

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जिसको सब कहते हैं समंदर है
क़तरा-ए-अश्क-ए-दीदा-ए-तर[1]है

अबरू-ए-यार[2] दिल का ख़ंजर है
मिज़ा-ए-यार[3] नोक-ए-नश्तर[4] है

चश्म-ए-आशिक़[5] से दो बहे दरिया
एक नसीम एक कौसर है

ख़ाना-ए-दिल[6] है ग़ैर से ख़ाली
शौक़ से आओ आपका घर है

क़तई आज फ़ैसला होगा
तेरी तलवार है मेरा सर है

अब तो धूनी रमा के बैठे हैं
दर-ए-जानाँ[7] पे अपना बिस्तर है

तमअ[8] हर एक का दीन-ओ-ईमाँ है
जिसको देखो वो बंदा-ए-ज़र[9] है

ख़ूब दिल खोलकर जफ़ा[10] कर लो
बंदा मुद्दत से इसका ख़ू-गर[11] है

बाम[12] पर जलवा-गर[13] है वो शायद
कू-ए-जानाँ[14] में शोर-ए-महशर[15] है

करता आलम[16] को आह से बरहम[17]
लेक[18] 'राना' को यार का डर है

(1. नम आँखों से बहे आँसू का एक क़तरा; 2. प्रियतमा की भौंहें; 3. प्रियतमा की पलकें; 4. तीर की नोंक; 5. आशिक़ की आँखें; 6. दिल रूपी घर; 7. प्रियतमा की चौखट; 8. लालच; 9. दौलत का भक्त; 10. बेवफ़ाई; 11. आदी; 12. छत; 13. मौजूद; 14. प्रियतमा की गली; 15. बहुत ज्यादा शोर; 16. दुनिया; 17. परेशान/नाराज़; 18. लेकिन)

शब्दार्थ
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