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जिसने खुशियों को जितना सहेजे रखा / दरवेश भारती
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जिसने खुशियों को जितना सहेजे रखा
उसको उतना ग़मों से पड़ा वास्ता
पीढ़ियाँ चुक गयी हैं चुकाते उसे
क़र्ज़ इतना कि अब तक न जो चुक सका
आखिरी साँस तक छोड़िए मत इसे
आस बेआस लोगों का है आसरा
रौनकें थीं खुली आँखों के सामने
मुँद गयीं ये तो ओझल हुआ क़ाफ़िला
सरबुलन्दी न रास आयी 'ददवेश' उसे
जिसने अपनी अना का सर ऊँचा रखा