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जिसने जीवन में कभी भी हाथ फैलाया नहीं / कैलाश झा ‘किंकर’
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जिसने जीवन में कभी भी हाथ फैलाया नहीं
उसके माथे को किसी का ऋण झुका पाया नहीं।
खोने-पाने के लिए ही ज़िन्दगी मशहूर है
आज तक उसने कभी यह राज़ बतलाया नहीं।
देखने में एक जैसे लोग लगते हैं सभी
एक जैसा आदमी तो रब ने बनवाया नहीं।
प्रेम की ताकत से बढ़कर कौन-सी ताकत भला
फूल को भौंरों ने अबतक ज़ख़्म पहुँचाया नहीं।
मतलबी लोगों से दुनिया का बहुत नुक़सान है
स्वार्थ में अन्धा बना जो आज तक भाया नहीं।
हम वफ़ा के गीत गाते, मुस्कुराते बढ़ रहे
बे-वफ़ा के गीत को हमने कभी गाया नहीं।