जिसमें किस्मत ढो जाने की है तासीर / प्रेम भारद्वाज
जिसमें क़िस्मत ढो जाने की है तासीर<ref> गुण</ref>
मर जाती कुछ हो जाने की है तासीर
कारीगर हाथों से तरशा जाए तो
पत्थर में बुत हो जाने की है तासीर
हिमनद पिघलें तो फिर ऐसी सरिता में
फैला सागर हो जाने की है तासीर
हाल किसी का क्या पूछेगा मौसम में
अपना रोना रो जाने की है तासीर
रातों जागें,ठगने हों जब लोग भले
वैसे उनकी सो जाने की है तासीर
भीड़ में हाथ बुज़ुर्गों का थामेंगे क्या
जिन बच्चों में खो जाने की है तासीर
ध्यान ज़रा रखिए क्यारी का, आँधी में
कैक्टस काँटे बो जाने की है तासीर
ठीक हरारत<ref>ताप</ref> मिट्टी पानी मिलने पर
बीज में बरगद हो जाने की है तासीर
वृन्दा,सीता,गांधारी व अहिल्या में
पत्थर बन सब ढो जाने की है तासीर
अपनी इस तहज़ीब में सब इल्ज़ामों की
औरत के सिर हो जाने की है तासीर
रस्मन <ref>प्रथावश</ref>दुनियादारी की इस महफ़िल में
बैठे तो हैं गो जाने की है तासीर
रोटी को मोहताज<ref>आकांक्षी</ref> हैं फिर भी सपनों में
परियाँ ,पंछी हो जाने की है तासीर
आख़िर दम तक काया के गलियारों में
भार हवस का ढो जाने की है तासीर
डोरी में कमज़ोरी है तो माला में
मनका-मनका हो जाने की है तासीर
एक नज़र में एक ही पल में सदियों की
प्रेम की करनी धो जाने की है तासीर