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जिसमें तुम भी थे / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल

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गणित में माहिर तुम
प्रेम भी गणित ही रहा
तुम्हारे लिए
जोड़ते रहे –प्रेम-एक
प्रेम-दो प्रेम-तीन
बढ़ती रही संख्याएं
भर गयी
तुम्हारी डायरी
प्रेम की अगणित संख्याओं से
गर्वित हुए तुम अपनी उपलब्धि पर
गर्वित हुई मैं भी अपने प्रेम पर
जहाँ दो मिलकर होते हैं एक
संख्याएँजहाँ घटती जाती हैं
दो से एक में विलीन होते हुए निरंतर
अंत में शून्य में विलीन हुई मैं
शून्य जो
प्रेम का उत्कर्ष है ब्रह्मांड
समाया है
जिसमें सबकुछ
प्रेम करती मुझमें
समाए हो
तुम भी।