भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिससे रिश्ते को निभाने का कोई वादा नहीं / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिससे रिश्ते को निभाने का कोई वादा नहीं
उससे ताउम्र का याराना भी तो अच्छा नहीं

कैसे मैं कह दूँ कि फूलों ने दिया धोखा नहीं
और काँटो ने दिया साथ न हो, ऐसा नहीं

साथ-ही-साथ उसके क्यों न रोशनी हो लगी
पर ये ऐसा तो नहीं होगा कि हो साया नहीं

छोड़ सकता हूँ कभी भी तेरी ये दुनिया को
मुझको लगता है तेरी दुनिया मेरी दुनिया नहीं

तुम अब ये देखो कहाँ आदमी का नामो निशां
क्या ये देखो हो जला किसका घर और किसका नहीं

अब तो हाथों में तुम्हारे ही फैसला जो करो
द्वार पर जा के भी लौट आया किया सजदा नहीं

जाने वो कौन-सा भय से तो रहस खोल गया
सामने जिसको कि 'अमरेन्द्र' के भी लाया नहीं।