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जिसे खुद से भी ज्यादा मानते हैं / अंजनी कुमार सुमन
Kavita Kosh से
जिसे खुद से भी ज्यादा मानते हैं
वही मुझको नहीं पहचानते हैं
चले जाते हैं उसकी राह फिर भी
मिलेगा वह नहीं यह जानते हैं
रही गलती हमारी ही असल में
लचीले हैं तभी सब तानते हैं
बहुत इन्सान जो लगता है उसको
ये कुत्ते भी उसी पर फानते हैं
हमारा पाँव तो देखो इधर है
वहाँ क्यों व्यर्थ गड्ढ़े खानते हैं