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जिसे भी साथ लिया मैंने हमसफ़र की तरह / हरेराम समीप

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जिसे भी साथ लिया मैंने हमसफ़र की तरह
वही बताने लगा ख़ुद को राहबर की तरह

वो मेरा दोस्त है‚ मेरा अज़ीज़ है‚ फिर भी
मुझे सिखाता है चालाकियाँ हुनर की तरह

वो शाख ¬शाख मेरी काटकर जलाता है
मुझे समझता है सूखे हुए शजर की तरह

न हौसले की कमी थी‚ न योग्यता कम थी
बस इक लिहाज का साया था दिल में डर की तरह

बताओ कैसे मुहब्बत बचाये रक्खे कोई
हवा में फैल रही है घृणा ज़हर की तरह

कभी उदासियों की राख झाड़कर तो देख
चमक उठेगा तेरा हौसला शरर की तरह