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जिसे भुला ही दिया था किसी जमाने में / गोविन्द राकेश

जिसे भुला ही दिया था किसी जमाने में
उसे ही ढूंढ रहा हूँ नये फ़साने में

सफ़र में साथ चले और मंजिलें पा लीं
उसे न देर लगी उँगलियाँ उठाने में

रहा क़रीब मेरी जान की तरह लेकिन
लगा रहा वह मेरा आशियाँ जलाने में

नसीब साथ नहीं दे रहा मेरा अब तक
ये उम्र खपने को है घर नया बनाने में

किसी भी हाल नहीं हाथ अब ये छोड़ेंगे
बड़ी थी देर लगी दूरियाँ मिटाने में