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जिसे होना है बुद्ध / प्रमोद कुमार शर्मा

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मेरी जीभ पर
खड़ा है एक मनुष्य
अगर मैं होता सांप
या मेंढक कोई-तो लपक कर
निगल लेता पेट में।
परंतु मैं कवि हूँ
मनुष्य मेरे लिए सबसे बड़ा
उपकरण है संवेदना का
इसी मनुष्य के लिए
की थी मैंने कविता में प्रार्थनाएं
इसी के दुखों और सुखों में होकर
एक रस-
मैंने उठाए थे कर्मों के दण्ड।
सोचता हूँ-
यह मनुष्य-जो मेरी जीभ पर खड़ा है
दरअसल बहुत बड़ा है
परंतु क्यों फिर यह
अंधकार में पड़ा है
क्यों नहीं समझ पाता यह
अपने समय का सबसे बड़ा युद्ध!
जिसमें होना है उसे फिर से बुद्ध!!