जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये
आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये
जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये
जल रहा है देश यह बहला रही है क़ौम को
किस तरह अश्लील है कविता की भाषा देखिये
मतस्यगंधा फिर कोई होगी किसी ऋषि का शिकार
दूर तक फैला हुआ गहरा कुहासा देखिये.