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जिस्म से जाँ की धोखाधड़ी क्या करें / सूरज राय 'सूरज'
Kavita Kosh से
जिस्म से जां की धोखाधड़ी क्या करें।
साँस की अपनी रस्साकशी क्या करें॥
उसने ख़ुद को हवाले किया है ख़ुदी
बेड़ियां, जेल ओ हथकड़ी क्या करें॥
मोम के खानदानों के वारिस हैं हम
आपकी आग से दोस्ती क्या करें॥
हमने सरहद को साबुत दिया था इसे
लाश बेटे की ये सरकटी क्या करें॥
कोई दिखता नहीं साफ़ उसको कभी
आँख में है कोई किरकिरी क्या करें॥
चाँद-तारों के दम पर ऐ शब न अकड़
इनकी ख़ुद की नहीं रौशनी क्या करें॥
जो है दिल में हमारे, ज़बाँ पर वही
हम ज़हीनों-सी बाज़ीगरी क्या करें॥
कहके ये मरहमों ने किनारा किया
ज़ख़्म करते हैं छींटाकशी क्या करें॥
जिसकी ईंटों की आपस में पटती न हो
ऐसे घर की भला चौकसी क्या करें॥
दिल में "सूरज" के हो जब हमारा अदब
हम चिराग़ों की चमचागिरी क्या करें॥