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जिस कूँ पी का ख़याल होता है / हातिम शाह

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जिस कूँ पी का ख़याल होता है
उस कूँ जीना मुहाल होता है

ख़म-ए-अबरू की याद सीं दिल पर
ज़ख़्म-ए-नाख़ुन हिलाल होता है

चल चमन तेरे फ़ैज़-ए-क़द से सर्व
हर क़दम में निहाल होता है

जब मैं रोता हूँ खोल कर दिल कूँ
शहर में बर्शगाल होता है

कौन जाने है ग़ैर-ए-हक़ तुझ बिन
जो कि ‘हातिम’ का हाल होता है