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जिस क्षण मन का दरपन टूटा / विमल राजस्थानी

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देने वाले तो मिले बहुत घावों की अनगिन भेंट, मगर-
सिसकी भरते, दुखते दिल को सहलाने वाला नहीं मिला
काटी चिकोटियाँ तो दुनियावालों ने हँस-हँसकर, जी भर
आहत मन को करुणा देकर बहलाने वाला नहीं मिला

लजवन्ती कलियों के घूँघट
रवि-कर ने उलट-पलट डाले
दूबों के हरे-भरे मुखड़े-
चुम्बन से पीत बना डाले

चुपके चोरों-सा दबे पाँव
मलयानिल भी आया हौले
रति-तृषित प्रकृति के केलि-
कक्ष के मुँदे हुए छवि-पट खोले

तानों-तिसनों की झड़ियों से पपनियाँ भिंगोयी गयीं, मगर-
रवि को, मलयानिल को दोषी बतलाने वाला नहीं मिला

जग के तीखे उपदेशों के-
दंशों ने हृदय बींध डाला
तम को अपने हिस्से में रख
मुझको दे डाला उजियाला

फिर खुलकर रास रचाने में-
जग को तो बाधा नहीं मिली
पर प्रेम-प्रकाशित गलियों में-
मोहन को राधा नहीं मिली

दिल खोल हँसी दुनिया उस क्षण, जिस क्षण मन का दरपन टूटा
थी भीड़ परायों की, अपना कहलाने वाला नहीं मिला
लेकिन अचरज की बात हुई, कालिख से पुता हृदय जग का
उसको मोहन की गीता के मन का उजियाला नहीं मिला

-30-31/1/1975