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जिस जगह फूल मुस्कुराते हैं / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
जिस जगह फूल मुस्कुराते हैं,
रोज मेहमां वहाँ पर आते हैं।
नींद खुलती मेरी परिंदों से,
जो झरोखों पर घर बनाते हैं।
करके महसूस हादसा कोई,
घर में पंखा नहीं चलाते हैं।
चाँदनी रात को मेरी छत पर,
लोग मेहंदी सुखाने आते हैं।
शहर की भीड़, गाँव की रौनक,
मेरे दर सबको यूँ लुभाते हैं।
घर की बुनियाद है बहुत गहरी,
पुरखे सम्मान घर में पाते हैं।
तुम कभी आओ मेरे घर ‘प्रभात’,
आस का दीप हम जलाते हैं