भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिस तन लग्या इशक कमाल / बुल्ले शाह
Kavita Kosh से
जिस तन लग्या इशक कमाल। नाचे बेसुर ते बेताल।
दरद मन्दाँ नूँ कोई ना छेड़े,
आपे आपणा दुःख सहेड़े,
जम्मणा जीऊणा मूल हुगेड़े<ref>उधेड़ देना</ref>,
आपणा बुज्झ आप ख्याल।
जिस तन लग्या इशक कमाल।
जिसने वैर इशक दा कीता,
धुर दरबारों फतबा<ref>फैसला</ref> लीता,
जदों हजूरों प्याला पीता,
कुझ ना रेहा जवाब सवाल।
जिस तन लग्या इशक कमाल।
जिस दे अन्दर वसेया यार,
उðेआ यारो यार पुकार,
ना ओह चाहे राग ना तार,
ऐवें बैठा खेले हाल।
जिस तन लग्या इशक कमाल।
बुल्ला सहु नगर सच्च पाया,
झूठा रौला सभ मुकाया,
सच्चिआँ कारन सच्च सुणाया,
पाया उस दा पाक जमाल।
जिस तन लग्या इशक कमाल।
शब्दार्थ
<references/>