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जिस तरफ भी जाइए हर ओर हैं दुश्वारियाँ / विनोद तिवारी

जिस तरफ़ भी जाइए हर ओर हैं दुश्वारियाँ
डाक्टर जितने बढ़े उतनी बढ़ीं बीमारियाँ

पढ़ने वाले फ़ेल हो जाते हैं मगर वे पास हैं
जो परीक्षा की नहीं कर पाए थे तैयारियाँ

उसने ख़ुद को बेच डाला है भरे बाज़ार में
काश कोई देखता उस शख़्स की लाचारियाँ

कौन लेगा सच बहुत ही खुरदरा बदशक्ल है
झूठ पर पालिश तो क्या, होती हैं मीनाकारियाँ

भर रहा हूँ मैं बुझे चेहरों में उम्मीदों के रंग
राख की ढेरी में हो सकती हैं कुछ चिनगारियाँ