जिस दिन भी बिछड गया, प्यारे / भारत भूषण
जिस दिन भी बिछड गया प्यारे
ढूँढ़ते फिरोगे लाखों में।
फिर कौन सामने बैठेगा
बंगाली भावुकता पहने,
दूरों-दूरों से लाएगा
केशों को गंधों के गहने।
यह देह अजन्ता शैली-सी
किसके गीतों में सँवरेगी।
किसकी रातें महकाएँगीं
जीने के मोड़ों की छुअनें।
फिर चाँद उछालेगा पानी
किसकी समुन्दरी आँखों में।
दो दिन में ही बोझिल होगा
मन का लोहा, तन का सोना।
फैली बाँहों-सा दीखेगा
सूनेपन में कोना-कोना।
अपनी रुचि-रंगों के चुनाव
किसके कपडों में टाँकोगे,
अखरेगा किसकी बातों में
पूरी दिनचर्या ठप होना।
दरकेगी सरोवरी छाती
धूलिया जेठ-बैसाखों में।
ये गुँथे-गुँथे बतियाते पल
कल तक गूँगे हो जाएँगे,
होंठों से उड़ते भ्रमर-गीत
सूरज ढलते सो जाएँगे।
जितना उड़ती है आयु-परी
इकलापन बढ़ता जाता है।
सारा जीवन निर्धन करके
ये पारस पल खो जाएँगे।
गोरा मुख लिए खड़े रहना
खिड़की की स्याह सलाखों में।