जिस दिन से साथियों की ज़रूरत नहीं रही / दरवेश भारती
जिस दिन से साथियों की ज़रूरत नहीं रही
आँखों को बदलियों की ज़रूरत नहीँ रही
लाशों का कोई ठौर-ठिकाना नहीं रहा
शमशानभूमियों की ज़रूरत नहीं रही
है दबदबा फ़िरंगी ज़बां का कुछ इसक़दर
अब अपनी बोलियों की ज़रूरत नहीं रही
शह्रों की सिम्त खुद हैं परिन्दे रवाँ-दवाँ
वन में बहेलियों की ज़रूरत नहीं रही
बतियाने हेतु जबसे ये मोबाइल आये हैं
बतियाती चिट्ठियों की ज़रूरत नहीं रही
सर पर रखे जो हाथ, वही सर को ले उड़े
ऐसे हितैषियों की ज़रूरत नहीं रही
जेलों में फूल-फल रही नेताओं की जमात
अब आम क़ैदियों की ज़रूरत नहीं रही
जल्वे बुरे कि अच्छे म्यस्सर हैं टी वी पर
तकने को खिड़कियों की ज़रूरत नहीं रही
कारों में हो सवार विदा होतीं दुल्हनें
'दरवेश' डोलियों की ज़रूरत नहीं रही