भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिस दुनिया में / संध्या नवोदिता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संतृप्त
ऊबे हुए मेरे साथी पुरुष
अब कुछ बचा ही नहीं
तुम्हारे लिए
जहाँ
जिस दुनिया में

चीज़ें शुरू होती हैं
वहीं से
मेरे लिए