Last modified on 20 अगस्त 2018, at 18:01

जिस ने ज़ाते-ख़ुदा को माना है / ईश्वरदत्त अंजुम

 
जिस ने ज़ाते-ख़ुदा को माना है
उसने वहदत का राज़ जाना है

चंद ही रोज़ चहचहाना है
चंद ही दिन का आबो-दाना है

आदमी आदमी का है दुश्मन
क्यों मिजाज़ इस का ज़ालिमाना है

इस सराए है ये जहां सारा
काम सारा मुसाफ़िराना है

महवे-मस्ती यहां है हर कोई
सारा आलम शराब खाना है

इक अज़ीयत है मौत ये माना
ज़िन्दगी एक क़ैद खाना है

शाख़ की और खैर मांगता हूँ मैं
शाख़ पर मेरा आशियाना है

वजह तशवीश की है क्या अंजुम
जो भी आय है उसको जाना है