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जिस पर लिपटा हुआ सर्परूपी कंगन / कालिदास

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»  जिस पर लिपटा हुआ सर्परूपी कंगन

हित्‍वा तस्मिन्भुजगवलयं शंभुना दत्‍तहस्‍ता
     क्रीडाशैले यदि च विचरेत्‍पादचारेण गौरी।
भड्गीभक्‍त्‍या विरचितवपु: स्‍तम्भितान्‍तर्जलौघ:
     सोपानत्‍वं कुरू मणितटारोहणायाग्रयायी।।

जिस पर लिपटा हुआ सर्परूपी कंगन उतारकर
रख दिया गया है, शिव के ऐसे हाथ में
अपना हाथ दिए यदि पार्वती जी उस क्रीड़ा
पर्वत पर पैदल घूमती हों, तो तुम उनके
आगे जाकर अपने जलों को भीतर ही बर्फ
रूप में रोके हुए अपने शरीर से नीचे-ऊँचे
खंड सजाकर सोपान बना देना जिससे वे
तुम्‍हारे ऊपर पैर रखकर मणितट पर आरोहण
कर सकें।