जिस लड़ाई में भाई भाई मारे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
वह लड़ाई ईश्वर के ख़िलाफ़ लड़ाई है,
जिसमें भाई भाई को मारता है ।
जो धर्म के नाम पर दुश्मनी पालता है,
वह भगवान को अर्ध्य से वंचित करता है ।
जिस अन्धेरे में भाई भाई को नहीं देख सकता,
उस अन्धेरे का अन्धा तो
स्वयं अपने को नहीं देखता ।
जिस उजाले में भाई भाई को देख सकता है,
उसमें ही ईश्वर का हँसता हुआ
चेहरा दिखाई पड़ सकता है ।
जब भाई के प्रेम में दिल भीग जाता है ,
तब अपने आप ईश्वर को
प्रणाम करने के लिए हाथ जुड़ जाते हैं ।
मूल बांग्ला से अनुवाद : मोहनदास करमचंद गांधी
अनुवाद की तारीख़ , २३ अक्टूबर १९४७
स्रोत : हरिजन सेवक, २ नवम्बर १९४७
लीजिए, अब यही कविता मूल बांगला में पढ़िए
जे युद्धे भाई के मारे भाई
से लड़ाई ईश्वरेर विरुद्धे लड़ाई ।
जे कर धर्मेर नामे विद्वेष संचित,
ईश्वर के अर्ध्य हते से करे वंचित ।
जे आंधारे भाई के देखते नाहि भाय
से आंधारे अंध नाहि देखे आपनाय ।
ईश्वरेर हास्यमुख देखिबारे पाइ
जे आलोके भाई के देखिते पाय भाई ।
ईश्वर प्रणामे तबे हाथ जोड़ हय ,
जखन भाइयेर प्रेमे विलार हृदय ।