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जिह्वा ही पर नाम रहे / अज्ञेय
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जिह्वा ही पर नाम रहे तो कोई उस की टेर लगा ले,
शब्दों ही में बँधे प्यार तो उसे लेखनी भी कह डाले;
आँखों में यदि हृदय बसा हो करे तूलिका उस का चित्रण-
वह क्या करे जिस की रग-रग में हो आत्मदान का स्पन्दन?
मेरे कण-कण पर अंकित है प्रेयसि! तेरी अनमिट छाप-
तेरा तो वरदान बन गया मुझे मूकता का अभिशाप!
डलहौजी, 1934