जीअत मुरदा / राजनन्दन सिंह 'राजन'
कवना गाछ
जब ना जान सके मौसम के फेरा
आ छोड़ देवे डालल आपन छाँह के डेरा ;
त बुझ लीं कि ओह गाछ के सोंढ़
सूख गइल बा।
जब पानी
भूला जाए आपन बहे के राह
आ ओरा जाए ओकर पिआस बुझावेवाला गुन ;
त बुझ लीं कि ऊ पानी
पाँकि हो गइल बा।
जब धरती
उपजा ना सके कवनो फसल
आ बंद हो जाए ओकर गावल
जिनगी का खुशी के गीत ;
त बुझ लीं कि ऊ धरती
परती हो गइल बा।
कवनो आदमी
जब ना रह जाए करे लायक कवनो नीमन काम
आ ना भर सके जिनगी में उमंग ;
त बुझ लीं कि ऊ आदमी
जीअत मुरादा हो गइल बा।
कवनो राज्य
जब झोंकवावे लागे जनता के भक्सी
आ भुला जाए जनहित के काम ;
त बुझ लीं कि ओह राज्य के दिन
पूज गइल बा।
कवनो समाज
जब करे लागे खुल के खिलाफत,
बिना ई फिकिर कइले
कि आ सकेला कवनो लम्हर आफत ;
त बुझ लीं खंधड़ल देवाल
ढ़ाहे के दिन गइल बा।