भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीए पई / मुकेश तिलोकाणी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घड़ियाल जे
घिंड बैदि
लठि जी ठकि ठकिं
वॾी छिक
अढाई...न...65!
अखियूं छित में...
अञां...
बम बारूद
भरि में।
अञा अढाई!?
कुकड़ जी ॿांग बैदि
राम सुमरणु
प्रभात मेरे मन...
ओ...!
अञा...!?