जीणा होग्या भारी बेबे / रणवीर सिंह दहिया
अंग्रेज फौज के सिपाहियों को बरसों घर नहीं जाने दिया जाता था। फिरंगी सोचता था कि कहीं उनकी औरते उन्हें भरमाकर मकसद से ना भटका दें। इस क्रूरता के चलते गांवों में शहरों में महिलाओं को बहुत कष्ट झेलने पड़ रहे थें। कुछ लड़कियां घरों से भागने लगी थी। मैत्रायी पुष्पा की कहानी की रज्जो। उसका आदमी फौज में गया और काफी दिनों तक नहीं लौटा। रज्जो घर के बेड़िनी के संग भाग जाती है। मगर वह भी उस दौर के महौल से अछूती नहीं रहती। इस तरह की ट्रेनिंग के दौरान झलकारी बाई और औरतों के बीच बातें होती हैं। सब अपने-अपने ढंग से पूरे घटना क्रम को देख रही हैं। झलकारी बाई उन सब की बाते सुनकर क्या कहती है भलाः
जीणा होग्या भारी बेबे, तबीयत होगी खारी बेबे
सबनै ख्याल उतारी बेबे,फेरबी जीवन की आसमनै॥
पुराना घेरा तोड़ बगाया, हथियार हाथा मैं उठाया
कमाया मनै जमा डटकै, उनकै याहै बात खटकै
मेरी हर बात अटकै, पूरा हुआ अहसास मनै॥
मुंह मैं घालण नै होरै, चाहे बूढ़े हों चाहें छोरे
डोरे घालैं शाम सबेरी, कहते मनै गुस्सैल बछेरी
चाहते मेरै घाली घेरी, गैल बतावैं बदमाश मनै॥
सम्भल-सम्भल कदम धरूं, आण बाण पै कटकै मरूं
करूं संघर्ष मिल जुल कै, हसूं बोलू सबतै खुलकै
ना जीउं घुल-घुल कै, बात बता दी या खास मनै॥
चरित्राहीन मनै बतावैं, भौं कोए तोहमद लगावैं
खिंडावै या ईज्जत म्हारी, बछिया की होवै चिन्ता भारी
रणबीर बरगा लिखारी, बताया चाहवै इतिहास मनै॥