भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीणो है तो / सांवर दइया
Kavita Kosh से
आंख्यां आडा तिरवाळा
रूं-रूं में चबका
टूटूं-टूटूं सांसां कैयो-
घड़ी-खण खातर ढबज्या
पण
इणी बगत मांय सूं आयो उथळो-
इंयां हिम्मत हारियां
किंयां पार पड़सी
जीणो है तो
जूझणो पड़सी ।