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जीते जी ये रोज़ का मरना ठीक नहीं / मदन मोहन दानिश
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जीते जी ये रोज़ का मरना ठीक नहीं ।
अपने आप से इतना डरना ठीक नहीं ।
मीठी झील का पानी पीने की ख़ातिर,
उस जंगल से रोज़ गुज़रना ठीक नहीं ।
कुछ मौजों ने मुझको भी पहचान लिया,
अब दरया के पार उतरना ठीक नहीं ।
रात बिखर जाती है दिन की उलझन से,
रात का लेकिन रोज़ बिखरना ठीक नहीं ।
वरना तुझसे दुनिया बच के निकलेगी,
ख़ुद से इतनी बातें करना ठीक नहीं ।
सीधे सच्चे बाशिंदे हैं बस्ती के,
दानिश इन पर जादू करना ठीक नहीं ।