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जीत उच्छब / सांवर दइया
Kavita Kosh से
रात : जुल्मां री राजधानी
अंधारो : गुण्डो
एकलो सूरज
जूझै
जीतै
मनावै जीत-उच्छब
अगूण किलै ऊभ
उडावै सिंदूरी गुलाल !