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जीत कर भी पराजित हुए / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
जीतकर भी पराजित हुए
स्वप्न सारे तिरोहित हुए
हम सदा उत्तरों की जगह
प्रश्न बन कर उपस्थित हुए
ज़िन्दगी के महायुद्ध में
रोज़ ही रक्त रंजित हुए
सुन्दरी से शिला बन गए
हम अहिल्या-से शापित हुए
तन कहीं,मन कहीं,धन कहीं
हर तरह से विभाजित हुए
कोयले से रही दोस्ती
इसलिए हम कलंकित हुए
वक्त की धार में उम्र-भर
चींटियों-से प्रवाहित हुए