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जीत री छोड हारो तो सरी / सांवर दइया
Kavita Kosh से
जीत री छोड हारो तो सरी
आ मौज नुंवी मारो तो सरी
जग सूं कांई थे आवो परा
म्हांरा ऐढा सारो तो सरी
जाणै जिका ई जाणै मिठास
आंसू होवै खारो तो सरी
रात-रात कठै रैवै सूरज
लेवो इण रो लारो तो सरी
ऊंची डाळां पण फूल थांरो
एकर मन में धारो तो सरी