भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीना और सीना / फ़रीद खान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोज़ सुबह उठ कर वह सबसे पहले,
अपनी पथरीली हो चुकी हथेली को देखती है,
और आँखों से लगा कर चूम लेती है ।
वह रोज़ उस शिलालेख में पढ़ना चाहती है अपना भविष्य ।

रोज़ प्राचीन होती जाती है वह, और इतिहास भी ।

उसका वर्तमान,
जीना है और सीना है ।