भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीना नहीं आता है मरना नहीं आता है / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जीना नहीं आता है मरना नहीं आता
कुछ काम सलीक़े से करना नहीं आता

चढ़ना तो पहाड़ों पे बड़ी बात है लेकिन
हैरत है कि लोगों को उतरना नहीं आता

महफ़िल में बुलाना हो तो ये ज़ेहन में रखना
महफ़िल के मुताबिक मुझे ढलना नहीं आता

रुतबा है बहुत उनका,उनका ही फ़क़त जिनको
इन्सान को इन्सान समझना नहीं आता

दिल में तो समुन्दर है आँखों को हुआ क्या
क्या देख लिया है कि छलकना नहीं आता

ये दौर-ए-जफ़ा चाहे मुझे जितनी सज़ा दे
मुझको तो वफ़ाओं को कुचलना नहीं आता

होता ही नहीं कोई गिला मुझको किसी से
अच्छा है कि लोगों को परखना नहीं आता

‘परवेज़’,कभी दिल को पत्थर न बनाना
पत्थर के दिलों को तो धड़कना नहीं आता