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जीने का अरमान / ईश्वर दत्त माथुर
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दु:ख में मुझको जीने का अरमान था
सुख आया जीवन में ऐसे
लेकिन मैं कंगाल था ।
लक्ष्य नहीं था, दिशा नहीं थी
लेकिन बढ़ते ही जाना था
नहीं सूझता था मुझको कुछ
अपनी ही धुन में गाता था ।
पंख लगाकर समय उड़ गया
लेकिन मैं ग़मख़्वार था ।
सुख की बदली ऐसी आई
मन में केवल प्रीत समाई ।
दिन के पंख लगे कुछ ऐसे
शेष नहीं केवल परछाईं ।
अब अपने ही लगे डराने
लेकिन मैं लाचार था ।