भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीने का अहसास / विम्मी सदारंगाणी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


रास्ते पर
दौड़ती गिलहरी को देख
अपनी गाड़ी को एकदम से ब्रेक लगाती हूँ
तब महसूस होता है
मेरे अंदर कोई ज़िंदा है।

अपनी प्रिय किताबों के बीच
चिड़िया को आराम से
घर सजाने देती हूँ
तब मन मानता है
कि मेरे अंदर कोई साँस ले रहा है।

कुत्ते के पिल्ले की कूँ कूँ सुन
सारा काम आधे में छोड़
दरवाज़े तक दौड़ जाती हूँ
तब भरोसा होता है
कि `मैं´ ज़िंदा हूँ।

सिन्धी से अनुवाद : स्वयं कवयित्री द्वारा