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जीने का अहसास / विम्मी सदारंगाणी
Kavita Kosh से
रास्ते पर
दौड़ती गिलहरी को देख
अपनी गाड़ी को एकदम से ब्रेक लगाती हूँ
तब महसूस होता है
मेरे अंदर कोई ज़िंदा है।
अपनी प्रिय किताबों के बीच
चिड़िया को आराम से
घर सजाने देती हूँ
तब मन मानता है
कि मेरे अंदर कोई साँस ले रहा है।
कुत्ते के पिल्ले की कूँ कूँ सुन
सारा काम आधे में छोड़
दरवाज़े तक दौड़ जाती हूँ
तब भरोसा होता है
कि `मैं´ ज़िंदा हूँ।
सिन्धी से अनुवाद : स्वयं कवयित्री द्वारा