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जीने का बन गया है इमकान ज़िन्दगी में / हनीफ़ राही
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जीने का बन गया है इमकान ज़िन्दगी में
तुम आ गये हमारी वीरान ज़िन्दगी में
हर रास्ता है अब तो आसान ज़िन्दगी में
शामिल हुआ है जब से क़ुरआन ज़िन्दगी में
मरने के बाद इसकी मौहलत नहीं मिलेगी
कर आख़ेरत का प्यारे सामान ज़िन्दगी में
फिर मिल सकी न उसको जाए-पनाह कोई,
जिसने भी खो दिये हैं ओसान ज़िन्दगी में
ये कह के अपने दिल को देते हैं हम तसल्ली
पूरे हुए हैं किसके अरमान ज़िन्दगी में
कुछ ऐसे लोग भी हैं दुनिया में तेरी या रब
लेते नहीं किसी का एहसान ज़िन्दगी में
आदत सी बन गई है अब तो हनीफ़ "राही"
झेले हैं जाने कितने तूफ़ान ज़िन्दगी में