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जीने की जगह / प्रभात

Kavita Kosh से
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मैं तुझे जीवित समझकर लिखता हूँ तुझ पर कविता
ओ मेरी बहन तू आज भी है मुझसे दस बरस छोटी
मैं पैंतीस का हूँ तो तू पच्चीस की है
मेरी शादी सत्ताईस की उम्र में हुई
तेरी सोलह की उम्र में हो गई थी
और एक बरस बाद तू फन्दे से झूल गई थी

मैं उस त्रासदी को भूलकर लिखता हूँ तुझ पर कविता
भाई भाई कहती आई है तू मुझसे मिलने और तूने
मेरे घर को अपने कब्ज़े में कर लिया है
बच्चों को और तेरी भाभी को और टी० वी० कम्प्यूटर वगैरह सबको
चूँकि दो ही दिन ठहरेगी तू यहाँ इसलिए दो दिन तक भाई के घर को
ठीक से चलाके देख लेना चाहती है अपने हिसाब
तू देख लेना चाहती है चीज़ें ठीक-ठाक चल रही है या नहीं
भाभी और भाई के बीच कोई गड़बड़ तो नहीं
बच्चों के चेहरे पर उदासी की कोई लकीर तो नहीं
मकान-मालिक से हेलमेल है या ख़ाली करने को बालते रहते हैं
हाँ तू ऐसी समझदारों की सी बातें करने लगी है
क्योंकि तू वही थोड़े रह गई है सतरह साल की अल्हड़ किशोरी
तू बड़ी हो गई है –- युवती
और तेरे पास भी है तेरे से नाक नक़्श वाली एक बेटी
तू जीवित है तो देख इसे अवसर मिला है दुनिया में आने और जीने का

और अब वे सब अतीत की बातें हो गई है
तू मरना चाहती थी और हर किसी के सामने डब-डब रोती थी
मगर किसी को बता नहीं पाती थी कि आख़िर बात क्या है
तूने चाहा था पूरे जीवन रहना पिता के घर
तूने चाहा था मैं तेरे इस इरादे के लिए सिफ़ारिश कर दूँ पिता से
तूने चाहा था तुझे कभी वापस ससुराल न लौटना पड़े
तूने चाहा था तू किसी से कोई हिस्सा नहीं लेगी रहने को ठौर हो जाए बस
हल्ला मजूरी करके गुज़ारा कर लेगी
पिता के नाम पर कभी उँगली नहीं उठने देगी, बस जीने के लिए इजाज़त मिल जाय
तूने बुआ मामा काका काकी बहन भाई कोई रिश्ता नहीं छोड़ा था जिसे परखा न हो जाँचा न हो अपनी वेदना न बताई हो
मगर सबके भयभीत दिमाग़ों पर पड़ा था ताला
किसी ने मदद नहीं की तेरी
तेरी मदद तूने ख़ुद की तू उस काली ससुराल में कभी नहीं लौटी
कैसा विशाल दबाव तेरे सतरह बरस के जीवन पर छाया हुआ था
कितने महीने से तू विषाद में जीते हुए बहुत हँसती
और बहुत गीत गाती थी पति के ख़िलाफ़
और कोई नहीं समझ पाया था तेरे जुनून को
और एक दिन तूने खाट पर अपनी कलाईयों को फोड़-फोड़ कर
चूड़ा फोड़कर बिखेर दिया और रो-रो कर कहा था -- यह ले गैबी, यह ले मेरी तरफ़ से देख यह तू मर गया और अब मैं किसी की सुहागिन नहीं हूँ अब मैं ख़ुद हूँ जो मैं हूँ
फिर घरवालों के मनाने पर तू चुप हो गई थी

कैसे बुरे दिन बीत जाते हैं और ठीक-ठाक दिन आ जाते हैं
अब तू मेरे बराबर की हो गई है
छोटे बड़े का रिश्ता ख़त्म हो चुका है हमारे बीच
अब देख बरसों से मैं तुझे छोटी समझ कर पीटता भी नहीं हूँ
हाथ भी नहीं लगाता हूँ कभी भूलकर भी
तुझ इतनी बड़ी पर कैसे हाथ छोड़ूँ
और अगर तुझे उसी में समझ आता है भाई का प्यार
तो आ तेरी पीठ पर जमाऊँ धौल ओ मेरी मृत बहन
मैं तुझे जीवित समझकर लिखता हूँ तुझ पर कविता
मेरे बच्चे नहीं कह सके तुझसे बुआ
नहीं ला सकी तू इनके लिए गठरी में गुड़ की काँकरी