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जीने की दरकार रहे / विनय मिश्र
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जीने की दरकार रहे
गर दुनिया में प्यार रहे
घर के सपने देती है
ये टूटी दीवार रहे
बाज़ारों में बिक जाना
उनका कारोबार रहे
सारा आलम पतझड़ का
अब किस जगह बहार रहे
बैठ लोग अलावों पर
आँसू बन अंगार रहे
पर्दे गिरते हैं मानो
कुछ ना आख़िरकार रहे