भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीने की हवस / शहरयार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सफ़र तेरी जानिब था

अपनी तरफ़ लौट आया

हर इक मोड़ पर मौत से साबक़ा था

मैं जीने से लेकिन कहाँ बाज़ आया।